mere geet tumhara swar ho
क्यों यह रोना-धोना मेरे मन!
होगा जो है होना, मेरे मन!
क्या तू ही है एक उसे प्यारा!
या तू है औरों से कुछ न्यारा!
कर्मों का फल, मीठा या खारा !
पड़ा सभी को ढोना, मेरे मन!
चींटी के भी उदर रहा जो भर
छोड़ेगा न तुझे जग में लाकर
नौका सकुशल पहुँचेगी तट पर
साहस, धैर्य न खोना, मेरे मन!
जब ईश्वरता भी धरती नर-तन
दुख-घन उसपर भी घिरते प्रतिक्षण
संघर्षों में तपकर ही जीवन
बनता निर्मल सोना, मेरे मन!
क्यों यह रोना-धोना मेरे मन!
होगा जो है होना, मेरे मन!