mere geet tumhara swar ho

मोहभंग

अब तो इस बाग में सन्नाटा है
दिल का हर रेशा मैंने बाँटा है
अब वो ख़ुशबू कहाँ से लाऊँ मैं
गुलाब था जो कभी, कॉँटा है

रूप का ठाठ हो गया झीना
साज, श्रृंगार काल ने छीना
अब न महफिल है वह, न श्रोता वे
सामने भग्न पड़ी है वीणा