mere geet tumhara swar ho
सुनामी से
रात दिन मर-मरकर पेट पालते जो सदा
बसे तीर-तीर सिंधु नित हितकामी के
एक पल में ही काल-ज्वाल में ढकेला उन्हें
पाकर संकेत किस कठोर, क्रूर स्वामी के !
कहें पाप-फल जो इसे, पाप क्या सभी ने किये !
सच तो यह, पाप, थे ये प्रकृति की गुलामी के
भूमि, जल, पवन किसीकों भी कलंक लगा
हो भी तू सुनामी पर ये काम थे कुनामी के