meri urdu ghazalen
इल्मो-फ़न कुछ नहीं मालूम ग़मे-दिल के सिवा
कोई मंज़िल न मेरी इश्क़ की मंज़िल के सिवा
जाने क्यों पाँव उसी ओर बढ़े जाते हैं
महफ़िलें और भी तो होंगी तेरी महफ़िल के सिवा
जवाब जिसका नहीं आज तक हुआ मालूम
ज़िंदगी कुछ नहीं फ़रियादे-अनादिल के सिवा
सभी के जाम छलकते हैं तेरी महफ़िल में
कोई नाक़ाम नहीं एक मेरे दिल के सिवा
मौज हो, बर्क़ हो, तूफाँ हो, भँवर की गिरदाब
प्यार में सब मुझे मंज़ूर है साहिल के सिवा