meri urdu ghazalen

इस क़दर बहरे-ख़ुदी में डूबता जाता हूँ मैं
जिस तरफ फिरती निगाहें, बस नज़र आता हूँ मैं

यह हवस कैसी कि बढ़ता ही चला जाता हूँ मैं
दूर हो जाती है मंज़िल पास जब आता हूँ मैं

खौफ़े-गुलचीं ही नहीं, हर फूल में काँटा यहाँ
इस चमन में आशियाना करके पछताता हूँ मैं

जामे-हस्ती तोड़कर, अंजामे -हस्ती तोड़कर
एक कतरा था समन्दर बनके लहराता हूँ मैं

एक दिल उस पर हज़ारों नाज़-अंदाज़ों का बोझ
एक शीशा हूँ कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं