meri urdu ghazalen
ऐसे तो हुआ ही करती है हर बात निराली होली में
पर आपकी आँखों में देखी कुछ और ही लाली होली में
हाथों ने हवा के खींच लिया सीने से दुपट्टा पत्तों का
दुल्हन की तरह शरमाके झुकी हर डाली-डाली होली में
वह नीम की चस्मे-नीम खुली, वह आम की मंजर का मंज़र
वे गुल ने खिलाये गुल क्या-क्या, पामाल है माली होली में
कुछ ऐसी अदा से बल खाकर लहराती हुई चलती है हवा
पी सँग ससुराल को जाय दुल्हन ज्यों उम्र की बाली, होली में
लौ जैसी दियों की काँप रहीं, सरसों की कतारें खेतों में
झलमल हैं पलाशो-गुलमोहर, आयी है दिवाली, होली में
बाहर तो उजाला था लेकिन दिल अपने ही ग़म में डूब गया
यादों ने उभरकर सीने में होली-सी जला ली होली में
वह शायरे-रंगी, माहे-सुखन, क्या तुमने उसे देखा ही नहीं
जन्नत से चुराकर ले आया फूलों की जो डाली होली में !
(मेरा जन्म होली के पखवारे में हुआ था)