nahin viram liya hai

प्रीति यदि तुझमें सदा अटल हो
भय क्या हो फिर मुझे लाख जीवन में उथल-पुथल हो!

अणु से ले अनंत अम्बर तक
नियमों में जो छिपा नियामक
जिसे ढूँढ़ती बुद्धि गयी थक

देखूँ उसे विकल हो

बोध रहे यदि यह मानव-तन
महाचेतना का है दर्पण
पा लूँ निज में, लाख शून्य बन

तू दृग से ओझल हो

देश-काल की सीमा भूलूँ
यदि तेरी पदरेखा छू लूँ
जब तम की लहरों पर झूलूँ

जाना पार सरल हो

प्रीति यदि तुझमें सदा अटल हो
भय क्या हो फिर मुझे लाख जीवन में उथल-पुथल हो!