nahin viram liya hai

प्रेम का बंधन कभी न टूटे
इस बंधन में ही प्राणों से नित नव-नव स्वर फूटे

बँधे इसी बंधन में प्रतिक्षण
नाच रहे अणु-अणु बेसुध बन
इसमें ही रहकर मेरा मन

सदा मुक्ति-सुख लूटे

प्यास मिलन की रही अधूरी
मिलकर भी न मिटी है दूरी
कैसे, जब यात्रा हो पूरी

पथ की ममता छूटे!

यदि तू शशि, बन लूँ चकोर मैं
श्याम घटा तू, बनूँ मोर मैं
बँधा प्रेम की इसी डोर में

रच दूँ गीत अनूठे

प्रेम का बंधन कभी न टूटे
इस बंधन में ही प्राणों से नित नव-नव स्वर फूटे