nahin viram liya hai
सुआ तो उड़ता ही जायेगा
आँधी बहे कि ओले बरसें तनिक न अकुलायेगा
थकित पंख हों शिथिल सिरायें
कुछ मत सूझे दायें बायें
पर जबतक न नयन मूँद जायें
लक्ष्य न बिसरायेगा
मधुऋतु में तरु-तरु पर उड़कर
रस ले चुका फलों का जीभर
अब नभ पर चढ़ता यस स्तर-स्तर
भू पर क्यों आयेगा!
क्या स्वर्णिम पाजेब गढ़ाये!
दूध-भात के पात्र दिखाये!
जिसको अमरों की छवि भाये
इनमें क्या पायेगा
सुआ तो उड़ता ही जायेगा
आँधी बहे कि ओले बरसें तनिक न अकुलायेगा