nupur bandhe charan
श्रद्धा-सुमन
हवा और पानी-सी धरती जन-जन में बँट जावे
महामंत्र लाये जीवन का संत विनोबा भावे
सूरज-चाँद जहाँ तक चमकें, दिशाकाश हैं मेरे
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरण, चरण-दास हैं मेरे
मेरी आँखों में कुबेर की सब संपत्ति समायी
सब कुछ मेरे, पर जो मेरे, नहीं श्वास हैं मेरे
गिनती पुरी हुई, उड़ चले, कौन इन्हें समझावे!
किसने बाँधा वेग पवन का! किसने बाँधा पानी!
आसमान की नीली चादर, सबने सिर पर तानी
आसुमेरु सागर यह धरती, माता-सी जो सोयी
दीवालों से बाँध सकेगा इसे कौन अभिमानी।
सबको धारण किये धरा जो कौन उसे धर पावे!
आत्मा के हित लोक-विभव सब, मानव तुच्छ न कहना
जल के समतल-सा समाज को अविरल होगा रहना
धन का त्याग, शक्ति का करुणा, कर्म ज्ञान का गहना
धन्य हुआ जीवन में जिसने सरल भाव से पहना
लिये लुकाठी खड़ा कबीरा, घर फूँके सो आबे
जिसकी वस्तु उसीके आगे संगीनों का पहरा!
किसका यह अधिकार कि जिस पर राज्य-तंत्र है ठहरा!
यह भादों की नदी सूप से रोक सका है कोई।
भूमि-रहित भूखे मनुजों का सिंधु रहा जो लहरा
पल में ढा देगा साम्राज्यों के फौलादी दावे
निर्मल हो लो, उज्ज्वल हो लो, करुणा की धारा में
सीता-सी आत्मा बंदी क्यों कंचन की कारा में!
मानवता का महापर्व यह सर्व-त्याग की वेला
वामन आ पहुँचा है फिर से बलि के भंडारा में
कभी-कभी होता है ऐसा, दाता हाथ बिछावे
हवा और पानी-सी धरती जन-जन में बँट जावे,
महामंत्र लाये जीवन का संत बिनोवा भावे
1957