sau gulab khile
मुँह से कहते नहीं– ‘गुलाब भी है’
पर उन आँखों में कुछ जवाब भी है
रूप की सादगी पे मत जायें
दूध में थोड़ी-सी शराब भी है
वे बुरे को ही कह रहे हैं भला
वही अच्छा है जो ख़राब भी है
चाहिए आँख देखने के लिये
है जो परदे में, बेनक़ाब भी है
ख़्वाब कहते हैं लोग दुनिया को
सच है, दुनिया हसीन ख़्वाब भी है
फ़ीका-फ़ीका हुआ है बाग़ का रंग
यों तो होने को एक गुलाब भी है