sau gulab khile
मिलने की हर ख़ुशी में बिछुड़ने का ग़म हुआ
एहसान उनका ख़ूब हुआ फिर भी कम हुआ
कुछ तो नज़र का उनकी भी इसमें क़सूर था
देखा जिसे भी, प्यार का उसको वहम हुआ
नज़रें मिलीं तो मिलके झुकीं, झुकके मुड़ गयीं
यह बेबसी कि आँख का कोना न नम हुआ
ज्यों ही लगी थी फैलने घर में दिये की जोत
त्यों ही हवा का रुख़ भी बहत बेरहम हुआ
कुछ तो चढ़ा था पहले से हम पर नशा, मगर
कुछ आपका भी सामने आना सितम हुआ
आती नहीं है प्यार की ख़ुशबू कहीं से आज
लगता है अब गुलाब का खिलना ही कम हुआ