sita vanvaas
‘कहाँ हो, महावीर बलशाली।
लंकादहन दिखाकर मुझसे मुक्ति सदा को पा ली!
‘राजसभा यों मन को भायी
वन की नहीं याद भी आयी!
पाकर पिता-चरण सुखदायी
माँ की स्मृति धो डाली!
‘कभी पता लेने को मेरा
लाँघा था सागर का घेरा
और आज ऐसे मुँह फेरा
सुधि पल-भर न सँभाली!
‘माना तुम मन से हो योगी
पर लज्जा, दुख, ग्लानि न भोगी
जब प्रभु-मुख पर दिखी न होगी
मृदु स्मिति पहलेवाली!’
‘कहाँ हों, महावीर बलशाली !
लंकादहन दिखाकर मुझसे मुक्ति सदा को पा ली!!