sita vanvaas

लव-कुश बेसुध दौड़े आये
उमड़ चले आँसू, जननी के चरणों से लपटाये

‘माँ क्‍या चूक हुई बच्चों से!
इसी लिए थे पाले-पोसे!
यही दिखाने हम नगरों से

सब को वन में लाये!

‘था न राज्य का हमें प्रलोभन
तेरे दुख से दुखी रहा मन
क्यों ऐसे, माँ! निर्मोही बन

जाती नयन फिराये!

‘यदि अब यह जग नहीं सुहाता
साथ हमें भी ले चल, माता!
अब क्‍या वहाँ हमारा नाता

जहाँ न तू रह पाये!’

लव-कुश बेसुध दौड़े आये
उमड़ चले आँसू, जननी के चरणों से लपटाये