vyakti ban kar aa

क्या तू मुझे इसलिए गोद में लेना नहीं चाहता
कि मैं धूल और मिट्टी से सना हूँ?
रंगीन खिलौनों से खेलता हूँ,
फूल और तितलियों के पीछे पागल बना हूँ?

परंतु यह तो तुझे तभी सोचना था
जब मिट्टी, हवा और पानी से तूने मुझे बनाया था,
आग की लपटों में सुखाया था,
आकाश की गोद से लुढ़काया था

यदि मैं तेरे चरणों में पड़ा रहता
तो संसार की ये ठोकरें क्‍यों सहता!
ये पीड़ा और यंत्रणायें क्‍यों भोगता!
अपने उद्धार के लिए तुझसे क्यों कहता!

और तुझे भी मेरे भटकने की चिता क्‍यों होती!
क्यों तू मुझे पकड़ने को बाँहें फैलाता!
मेरी चेतना नश्वर रूपों के पीछे क्यों दौड़ती !
क्यों मैं बार-बार ठोकर खा-खाकर गिर जाता ?

मैं तो तेरी ओर बस हाथ ही बढ़ा सकता हूँ,
पास तो तभी आऊँगा जब तू मुझे बुलाएगा,
मिट्टी का कीड़ा तो मिट्टी पर ही रेंगता है,
मैं उतना ही उठुँगा जितना तू मुझे उठाएगा।