देश विराना है
- अकेलेपन का सफ़र
- अब इस शेष विदा के क्षण में
- अब कुल राम हवाले
- अब तो ठहरने लगे किनारे
- अब तो चलने के दिन आये
- अब यह खेल अधूरा छोड़ो
- अभी बज रहे थे, अब नीरव है वीणा के तार
- अयि अमर चेतना ज्योति-चरण
- अंत में सaभी छले गये
- अन्धकार, अन्धकार, अंधकार
- आकाश का यह कौन सा किनारा है ?
- इस अँधेरे बंद घर में
- इस तट पर ठहरा है कोई उस तट पर ठहरा है
- इसी को कहते हैं क्या जीना
- इसके पहले कि सूरज अस्त हो जाए
- इसके लिए दुःख मत करना
- एक दिन वासंती संध्या में
- एक लहर तीर से लिपट कर बोली
- ऐसी बहार फिर नहीं आएगी मेरे बाद
- कहाँ इस पुर के रहने वाले ?
- काल ! तू कौन कहाँ से आया?
- कितने बंधू गए उस पार
- कितने शीघ्र आ गए हैं हम नदी के किनारे !
- कौन अब सुनेगा ये गीत ?
- खुला है अंध गुफा का द्वार
- खेल लेने दो मन का दाँव
- गड़ेरिये के गीत -1
- गड़ेरिये के गीत -2
- गड़ेरिये के गीत -3
- घुटती साँस, छूटता साहस
- चतुष्पदियाँ
- चले गए वे दिन छिपने पर
- चलो धीरे से इस बस्ती में
- जब पछताते हुए मैंने कहा
- जब भी नाम हमारा आये
- जिस दिन नीरव होगी वीणा
- जिस क्षण चलने की वेला हो
- जी करता है आंखे मूँदूं
- जो यहाँ पे आये थे सैर को
- ज़हर सबको पीना पड़ता है
- डूब रहा हूँ मैं महाशून्य के अँधेरे में
- तार न जब डोलेगा
- तूने क्या खोया, क्या पाया !
- तूने कितना प्रेम निभाया
- दिन का शेष हुआ जाता है
- दीपक के बुझने का पल है
- दीपक मंद हुआ जाता है
- दूसरे जब थककर सो जायेंगे
- देख रहा मैं सम्मुख स्मृति से धुंधलके
- धरती पर, अम्बर के नीचे
- धीरे धीरे उतर रही है
- न जाने क्या होगा उस ओर
- निर्जन यमुना-तट से
- पता नहीं, लोग क्यों डरते हैं
- पहले मैं लाठी को घुमाता था
- पथ के अंतिम मोड़ पर
- पल-पल प्रहर-प्रहर
- प्राण-वीणा के सुनहले तार जब खुलने लगेंगे
- फूलों से सजने के दिन आ गये
- बादल को तो बरसकर आख़िर बिखर ही जाना है
- मिटटी ! छोड़ चरण तू मेरे
- मेरे जाने की वेला है
- मैं इन धूल भरी गलियों में
- मैं उन सीढ़ियों पर आकर बैठ गया हूँ
- मैं फिर यहीं खिलूँगा
- मुझे फिर है इस जग में आना
- मुझे भुला ही देना
- मृत्यु की खोज में दीप यह प्राण का
- मृत्युदंड
- मृत्तिके ! तेरी ही जय होती
- यदि मैं तुम्हें भूल भी जाऊँ
- यह आकाश सदा ऐसे ही टंगा रहेगा
- यह इतिहास अनंत एक लघु क्षण में ले लो
- यह भी बीत जायेगा, सब कुछ बीत जायगा
- यान निरंतर आगे की ओर भाग रहा है
- रात का चँदोवा घिर गया
- रात तुम्हारे कर में
- लगा है अब तो अंतिम दाँव
- लहर तीर पर पहुँच कर चिल्लायी
- वही है धरा, वही है अम्बर
- वाही हो नाव, वाही हो धारा
- विमुक्ति
- वीरान बस्ती
- शेर
- सब कुछ छोड़ चला बनजारा
- सब धरती कि ही माया
- सभी तरफ़ है अँधेरा, कहीं भी कोई नहीं
- सभी फल तोड़-तोड़ ले जाए
- सहन है नहीं विरह भी क्षण का
- सातों सुर बोलेंगे
- सीपियाँ बटोरते बटोरते साँझ हो गयी
- हम डाल के सूखे पत्ते हैं
- हम सब खेल खेलकर हारे
- हमारी वेला बीत चुकी है
- हमारे बीत रहे दिन कैसे
- हुए सब एक-एक कर न्यारे