गाँधी भारती
- उस दिन बोधि-वृक्ष के नीचे एक अबोध-हृदय आया,
- अंधकार-युग वह भारत का जब जातीय ज्योति थी क्षीण
- गलने लगा हिमालय लज्जा से सागर चिंघाड़ रहा
- तुमने जीवन दिया हमें, हम तुम्हें मृत्यु दे बैठे आप
- ठोकर खा गिर पडी, मनुजते! कौन अश्रुकण पोंछे आज
- बापू की पद-चिह्न-पंक्ति-सी मिट न सकेगी धरती पर
- बोल ‘महात्मा गाँधी की जय’ छोड़ दिये कितनों ने प्राण,
- भारत मेरे स्वप्नों का वह, जिसमें सब समान, सब एक,
- राजा राम अयोध्या के थे! हुए विदा जो उसको छोड़