मेरी उर्दू ग़ज़लें
- काँप उठती है क़यामत भी तेरी रफ़्तार से
- एक शीशा हूँ कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं
- उसको मुश्किल नहीं कहते कि जो आसां हो जाये
- गुलों के बदले शिगुफ्ता हैं ख़ार गुलशन में
- तुम्हारी चाहत में मर गया मैं, कभी तुम्हें एतबार होगा
- कहीं लालों-गुहर होगी, कहीं इल्मों-हुनर होगी
- मुझको दमभर भी तेरे कुचे में आराम नहीं
- कुछ हाजते-शमा तेरी महफ़िल में नहीं है
- अब तो मेरी आह में शायद असर होने लगा
- जफा-परवर से उम्मेदे-वफ़ा क्या
- नाराज़ हैं बुतों से खफ़ा हैं ख़ुदा से हम
- इल्मों-फन कुछ नहीं मालूम ग़मे-दिल के सिवा
- शहीदाने-वतन का खून आख़िर गुलफिशां निकला
- क्या हो रहा है हाले-गुलिस्तां न पूछिये
- जमाले-हुस्न है कुछ तो गुरूर होगा ही
- अब कहाँ है वे सरीरे साहबे शीरी मकाल
- ऐसे तो हुआ ही करती है हर बात निराली होली में
- रात तो हमने बितायी है किसी और के साथ
- नाकाम मुहब्बत के गुमनाम फरिश्तों ने
- मिलता ही नहीं जो खुलके कभी
- नहीं है ये आँखें भरी, जान लो
- बुझना ही जब रात में, ऐसे नहीं ऐसे
- हँसी अब उन होंठों पे छाने लगी है
- चाँदनी रहे यही चाँद रहे
- दर्द होता रहा रात भर
- प्यार तो दिल में कभी माना नहीं
- तैश में है कारवाने-ज़िंदगी
- यह सदा आती है आधी रात को उस पार से
- मरके भी राहत नहीं मिलती खयाले यार से