प्रेम-वीणा_Prem Vina
- अनचाहत की चाह
- अनुताप
- आज मेरे होंठ पर तिरती सुलगती प्यास किसकी
- आजा ओ मेरे जीवन कि तम से भरी विभावरी
- आधा आधा चित्र उतरता है
- आवश्यकता थी क्या जीवन की
- अ सकूँ यदि मैं न आधी रात को सागर किनारे
- आँधी
- आँसू की बूँदों से
- इतना रूप सवारूँगा तो
- इस मधुयामिनी के बाद
- उठ-उठकर अतीत के तल में
- उड़कर फिर अतीत में जायें
- उनकी एक प्रशंसात्मक स्मिति
- ऐसी लगन लगी प्राणों में
- ओ विदेशिनी
- अंतर का कोई द्वार कभी तो खड़केगा
- कस तो दिए प्राणों के तार
- कितने दिनों के बाद तुम्हें देखा
- कुछ तो पुण्य कमाया होगा
- कैसे मोल करूँ उस क्षण का
- कोयल पंचम स्वर में बोली
- कौन आता है सपना बन के
- कौन बैठा है मेरे मन में
- कौन सी थी दृष्टि वह
- गाता था कोई
- गीत और मुक्तक
- गीत मैंने लिख-लिखकर फाड़े
- गीतों की विदाई
- चतुष्पदियाँ
- चले तो देखा नहीं पलटकर
- चाँद को, चाहे रहे जिस धाम , रहने दो
- चाँदनी कविता लिखती उन्मन
- चाँदनी केवल चार दिनों की
- चाँदनी विदा ले रही सबसे
- छलनामयी
- जब भी कलम हाथ से छोड़ी
- जबसे तुमसे प्यार हो गया
- जितना प्यार तुम्हें करता मैं
- जीवन यों ही बीत गया
- टूटी हुई लाकर हूँ मैं
- तड़प रहा है ह्रदय तुम्हारा
- तुम्हारी मदभरी चितवन मुझे जीने
- तुम्हें देखते ही
- तुम्हें प्यार करने के पहले
- तुम्हें मैं किस तरह भूलूँ
- तुमने जो कुछ दिया प्राण के साथ
- देखो भूल गयी न मुझे तुम
- देश अनजाना रहे तो क्या
- दोहे
- द्वार बंद थे तेरे
- पछतावा
- पढ़ मेरी कविता
- परवशता
- पल में धोकर साफ़ कर सकूँ
- प्रेम करके हम तो पछताये
- प्रेम की इस मोहक नगरी में
- प्रिय ! सरकता जा रहा है हाथ से आँचल तुम्हारा
- फेर लो ये सुगंधमय साँसें
- फूल और काँटें
- फूल गुलाब के
- बहुत दिन बीते गीत सुनाते
- भूल मत जाना मुझे. प्रिये!
- मिट न सकेगी अब यह विरह-व्यथा
- मिल न सका क्यों होकर एक ?
- मेरा बस क्या टूट रही अभिव्यक्ति में !
- मेरे भाग्य पड़ी जो मदिरा
- मेरे मन में चित्र तुम्हारा
- मैं तुम्हारे गीत की वह पंक्ति होता एक
- मैं तुम्हारे चित्र को ही प्यार कर लूँगा
- मैं तो घायल हुआ
- मैंने क्यों पाला यह रोग
- मैंने कब चाहा
- मैंने प्रेम योग साधा है
- यद्यपि यह प्रभात की वेला
- रहस्यमयी
- राग नहीं जाता है
- रात सुन ली थी तान तुम्हारी
- रूप की राह में, प्रेम की चाह में
- लजालू प्रेमी
- लहरों के तल में सुहासिनी मेरी
- विकलता
- वियोग
- श्याम पुतलियाँ चमकीं
- स्वप्न और यथार्थ
- साधारण बातें
- सपना
- सपने क्या क्या नहीं दिखाते !
- सपने मुझे बुलाने आये
- सभी कुछ थी इस मन की माया
- हमारा फिर श्रृंगार करो
- हो चुके अब वे खेल पुराने
- ह्रदय में बस गए मेरे