kavita

नवजीवन भर दो
प्राणों में अपनी सुषमा का मृदु स्पंदन भर दो

जीवन के कुसुमित कानन पर
किरणों के कमनीय चरण धर
उतरो, अहे सत्य, शिव, सुंदर!
मधु की स्वर्ण-उँगलियों से छूकर उर्वर कर दो

नाच उठें कण-कण छवि में भर
ताल-ताल पर थिरक-थिरककर
मंत्र-मुग्ध, जड़, चेतन, थर-थर
जादूगर! अपनी सुंदरता का जादू कर दो
नवजीवन भर दो

1940