sita vanvaas
‘अब है परम शांति अंतर में
नौका तट पर पहुँच गयी है, रह चिर-काल भँवर में
‘टूट चुके हैं मोह-बंध सब
स्वामी! अनुमति दें, जाऊँ अब
ऐसा समय मिलेगा फिर कब
मुझको जीवन-भर में !
‘गुरुजन! क्षमा करें, वे सारे
वचन कहे जो दुख के मारे
अवधपुरी क्यों मुझे पुकारे
अब इस शेष प्रहर में!
‘मेरा शोक करे मत कोई
मैंने निष्फल आयु न खोयी
कार्य पूर्ण कर, सुख से सोयी
जा फिर अपने घर में!
‘अब है परम शांति अंतर में
नौका तट पर पहुँच गयी है, रह चिर-काल भँवर मे”