kasturi kundal base
तूने राजसी पोशाक में सजाकर
घड़ी भर को मुझे मंच पर भेजा था,
और मैं सचमुच अपने आपको
राजा मानने लगा,
तूने भिक्षा-पात्र हाथ में देकर
मुझे भिक्षुक का अभिनय सौंपा था
और मैं अपने आपको
भिखारी के रूप में ही जानने लगा।
कभी मैं गर्व से ऐंठता रहा,
कभी पीड़ा से चिल्लाता रहा,
और नेपथ्य में खड़ा-खड़ा
तू मेरी अज्ञता पर मुस्कुराता रहा।