mere geet tumhara swar ho
चलता रहूँ, चलता रहूँ
तेरा यही सन्देश है
उपदेश है, आदेश है
पर शक्ति चलने की न वह
ऊर्जा न पहली शेष है
निज विकलता किससे कहूँ!
ब्रह्माण्ड के कण-कण चलें
भू, व्योम, तारागण चलें
गति क्यों पगों की ही रुके
जब सतत उर-स्पंदन चलें
क्यों काल के दंशन सहूँ!
निष्कामता हो, भक्ति हो
मत भोग में आसक्ति हो
पर क्यों अचल हिमगिरि बनूँ
यदि कर्म से न विरक्ति हो!
वर दे कि सुरसरि-सा बहूँ
चलता रहूँ, चलता रहूँ