boonde jo moti ban gayee
मैं फिर भी चलता रहा हूँ।
एक दबी सिसकी-सी आती थी
शीशे की खिड़कियों के पार से
पुष्टसतनी स्फटिक की पुतलियोंवाले
ऊँघ रहे भवनों के द्वार से
फूलों की मालायें चरणों से रौंदता हुआ
तीर की तरह निकलता रहा हूँ।
कैसे-कैसे मुखौटों में लोग यहाँ
मुझे हर पड़ाव पर मिले थे!
कहीं सिर कटी फौजें संगीनें ताने खड़ी थीं,
कहीं टूटे हुए जीर्ण-शीर्ण किले थे!
पत्थर की आँखोंवाले सौदागरों के बीच
बर्फ के जैसा पिघलता रहा हूँ।
और वे सभी मुझे चाँदनी में नाच रहे
प्रेतों से दिखाई दिये थे;
कुछ ठठा-ठठाकर हँस रहे थे;
कुछ गर्दनें नीची किये थे।
वे मुझे घेरकर तालियाँ पीटने लगे, जब सुना
कि मैं चाँद पर टहलता रहा हूँ।
कहीं सरो के घने बाग और कहीं
महकती हुई झीलें बुलाती थीं;
हंसों और सारसों की टोलियाँ
पर फड़फड़ाकर उड़ जाती थीं।
पर मैं बेबस-सा सूरज की गठरी लादे
पग-पग पर कंधा बदलता रहा हूँ।
मैं फिर भी चलता रहा हूँ।