chandan ki kalam shahad mein dubo dubo kar
1965 के पाकिस्तानी आक्रमण पर
किसने पिघले हुए अनल को पीने का हठ ठाना!
किसने कपिला कामधेनु पर क्रूर-कुटिल शर ताना!
शांत तपोवन के हरिणों को चाहा चट कर जाना!
यह भूखा भेड़िया कहाँ से आ पहुंचा दीवाना!
ज्ञात न इसको, सिंहों से रक्षित है यह पूजा-घर!
केवल तिलक नहीं, केसरिया पट भी है अंगों पर!
पग धरना तो दूर, रावणी दृष्टिपात भी दुष्कर
फड़क उठेंगी कोटि भुजायें केवल आहट सुनकर
यह सच है, हमने चाहा था शांत तपोवन रखना
हिंसा-रक्तपात-दावा से मुक्त समीरण रखना
धूप-दीप-अक्षत दे माँ को भरा अन्न-धन रखना
सच है, हमने चाहा था वधिकों का भी मन रखना
पर जो स्मिति को हार समझते, अब उनसे क्या कहिए |
जो भय से ही प्यार समझते, अब उनसे क्या कहिए!
केवल शस्त्रोच्चार समझते, अब उनसे क्या कहिए!
दरबे को संसार समझते, अब उनसे क्या कहिए!
उनकी ही वाणी में है उनको समझाना पड़ता
शास्त्रों की मर्यादा के हित शस्त्र उठाना पड़ता
मोती उगते वहीं जहाँ मोती का दाना पड़ता
आँधी बोनेवाले को तूफान चबाना पड़ता
1965