anbindhe moti
टूट ज्यों गया हरिण का जोड़ा
देखा मैंने चंचलता में भय था थोड़ा-थोड़ा
नादविमोहित-सा, अपलक-पल, मुड़े नहीं ज्यों मोड़ा
कभी सशंक, बंक हो, दिशि-दिशि फिरता दौड़ा-दौड़ा
धवल भूमि, केसरिया डोरे, पट चंपे का चौड़ा
आतुर, भीत, खूँद-सी करता, ज्यों तुरंग का कोड़ा
टूट ज्यों गया हरिण का जोड़ा
देखा मैंने चंचलता में भय था थोड़ा-थोड़ा
1943