chandni

ज्योत्स्ना सुरपुर की मालिनी

कर में कंचन-कलशी ले ली
इठलाती कामिनी. नवेली
नंदन वन के बीच अकेली
चली उषा-वेला में रस छलकाती जैसे ग्वालिनी

सुरपति आ पहुँचे तब सहसा
गया कलश तिरछा ही रह-सा
राजा को तो धैर्य असह-सा
झुकी अरुण-पद-कमल-वंदिता त्रिभुवन-वैभव-शालिनी

पुलकित-उर, फैलाये झोली
पहुँची सभा-मध्य जब भोली
मूक पुरंदर, शचि-भ्रू डोली
हुई अवनि-तल पर निर्वासित मौक्तिक-लुटी-मरालिनी
ज्योत्स्ना सुरपुर की मालिनी

1941