guliver ki chauthi yatra

काल ने तोड़ दिए सब नाते
साथ छोड़कर गये सभी दो दिन को झलक दिखाते

भवन वही पर, अब न कहीं से वे परिचित स्वर आते
भग्न हुई गोष्ठियाँ, फिरे रसिकों के दल मदमाते

गुरुजन आशिष देते लौटे, प्रियजन गले लगाते
दिखे सभी, मिल घड़ी-दो-घड़ी, ज्यों आये त्यों जाते

काल ने तोड़ दिए सब नाते
साथ छोड़कर गये सभी दो दिन को झलक दिखाते