jyon ki tyon dhar deeni chadariya
प्रभु का यह प्रसाद है, भाई!
इस जीवन को तुच्छ समझ, मत उनकी करो हँसाईं
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह का पंचामृत जो पीते
हो सर्वथा मुक्त उससे, क्या रह सकते हो जीते!
यदि उपभोग उचित हो तो वह कभी न हो दुखदायी
कितने त्याग और तप से यह मानव-तन पाया है!
इसे देव-दुर्लभ संतों ने भी तो बतलाया है
कर्म-सेतु यह जिस पर चढ़कर प्रभ तक बने रसाई
यह जग सगुण रूप है उस निर्गुण परमेश्वर का ही
इसकी सेवा में यदि पाओ उसकी छवि मनचाही
तो हर कर्म ईश-पूजन-सा पड़ता रहे दिखायी
प्रभु का यह प्रसाद है, भाई!
इस जीवन को तुच्छ समझ, मत उनकी करो हँसाईं