kuchh aur gulab

कहनी है कोई बात, मगर भूल रहे हैं
है और भी सौगा़त, मगर भूल रहे हैं

दुनिया ने तो कहा जो, उन्हें याद है सभी
दिल ने कही जो बात, मगर भूल रहे हैं

इतना तो याद है कि मिले हम थे शाम को
कैसे कटी थी रात, मगर भूल रहे हैं

चल तो रहे हैं चाल बड़ी सूझ-बूझ से
उठने को है बिसात, मगर भूल रहे हैं

कहते हैं वे– ‘गुलाब में रंगत तो है ज़रूर
अपनी है जो औक़ात, मगर भूल रहे हैं’