kuchh aur gulab

आईने में जब उसने अपना चाँद-सा मुखड़ा देखा होगा
बाग़ में कोयल कूकी होगी, गुंचा-गुंचा फूटा होगा

हम कब तक यों दूर रहेंगे, आपने कुछ तो सोचा होगा !
प्यार का क्या मतलब निकलेगा ! आख़िर इस दिल का क्या होगा !

हमसे शिक़ायत है कि कभी हम अपनी बात नहीं कहते हैं
उससे भी पूछो, रंगमहल में अपने, वह क्या करता होगा

यों ही नहीं अपना सर कोई हर पत्थर से टकराता है
शायद, उसने हर पत्थर में आपका चेहरा देखा होगा

माना, एक गुलाब यहाँ पर अपनी ख़ुशबू छोड़ गया है
वह लेकिन सपना था, उसको भूल ही जाना अच्छा होगा