kuchh aur gulab

यों निगाहें थीं शरमा गयीं
मछलियाँ जैसे बल खा गयीं

प्यार में मर भी न पाये हम
याद बातें कई आ गयीं

कोई ऐसी भी सूरत थी एक
जिसपे नज़रें हमेशा गयीं

कोई ऐसे में जाता, भला !
बदलियाँ सामने छा गयीं

गंध कैसे छिपेगी, गुलाब !
ये पँखुरियाँ उन्हें भा गयीं