nahin viram liya hai
प्रभो! इस घर में आग लगी है
और जगानेवाली मुझको आप न अभी जगी है
क्या हो अंजलि-जल ढुलकाये!
शब्दों की साँकल खड़काये
जो भी दया दिखाने आये
उनसे गयी ठगी है
यह भी ज्यों जड़ता से हारी
तुम पर ही आशा अब सारी
‘कब हो करुणा-वृष्टि तुम्हारी’
नभ पर दृष्टि टँगी है
अजर अमर हो भी अशंक यह
पर शिशु जो निज लिए अंक यह
बचे न यदि, तुम पर कलंक यह
क्यों चेतना रँगी है
प्रभो! इस घर में आग लगी है
और जगानेवाली मुझको आप न अभी जगी है