nahin viram liya hai
बता दे क्या लूँ मैं क्या छोड़ूँ
इतने ठाठ सज दिये तूने, किस-किस से मुँह मोड़ूँ
लगे अमित रंगों के मेले
भरे न मन कितना भी खेले
कैसे मैं विराग सबसे ले
जग से नाता तोड़ूँ
तू जो नए काव्य नित लिखता
सब में मुझे अमृत-रस दिखता
रूप न उनका पल हो टिकता
क्यों न सुरों में जोड़ूँ
जब तक उतर न शून्य गगन से
लुढ़का दे तू मृदुल चरण से
तब तक हटे न यह रस मन से
कितने भी घट फोड़ूँ
बता दे क्या लूँ मैं क्या छोड़ूँ
इतने ठाठ सज दिये तूने, किस-किस से मुँह मोड़ूँ