nahin viram liya hai
कैसे तेरी करूँ बड़ाई !
बूँद-बूँद रस देकर तूने तृष्णा और बढ़ायी
जहाँ काल भी मुँह की खाता
इतनी दूर-दूर पथ जाता
वहाँ मुझे दो पग चलवाता
मति रखता भरमायी
सर्व-समर्थ तुझे सब कहते
स्रोत अनंत शक्ति के बहते
देख मुझे अभाव-दुःख सहते
तिल भर दया न आयी !
यश-वैभव-प्रभुता से क्या फल
जब मुझको रहना पल-दो-पल !
ज्ञात न, जाऊँ कहाँ छोड़ कल
कुटिया सजी-सजायी
कैसे तेरी करूँ बड़ाई !
बूँद-बूँद रस देकर तूने तृष्णा और बढ़ायी