vyakti ban kar aa

सूरज को डूबता देखकर
मैंने भी चाल तेज़ कर दी है,
राजपथ छोड़ कर,
यह टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी धर ली है,
लोग भले ही मुझे नासमझ कहें
और मेरी हँसी उड़ाते रहें,
कि मैंने हीरे-मोतियों के बदले
कंकर-पत्थरों से झोली भर ली है;
किंतु इन बातों की मुझे अब क्या चिता है!
जो सागर की गहराई थाहने चला हो
वह कहीं लहरों को गिनता है !
कहें, शौक से कहें
जिन्हें जो कहना है,
मुझे तो केवल अपने प्रति
प्रतिबद्ध रहना है।