anbindhe moti
तुम्हारी सुंदरता
प्रिय तुम अपनी सुंदरता से सुंदरता को लज्जित करती
मंथर मराल गति से अवनीतल पर नवनीत-चरण धरती
स्वागत में बढ़कर, ठिठक तनिक अनजाने बंधन से डरती
तुम विहँस रही संमुख साँसों में साँसों का सौरभ भरती
पाटल-पंखुरियों पर जैसे प्रातः आलोक बिखर पड़ता
अरुणिम रँग स्वर्ण चिबुकतल का, लज्जा में और निखर पड़ता
च्युत अस्त-व्यस्त तम-से केशों में, दीप-शिखा-सा मुख सलज्ज
ज्यों श्याम घनों में दिखलाई हिम-मंडिल शैल-शिखर पड़ता
किसलय-से तरुण कपोल बुना जिनमें अरुणिम सौदर्य-जाल
सोने के प्याले में देता मन््मथ जैसे छवि-सुधा ढाल
मूँगे से अधरों का रस तो गूँगे के गुड़-सा अकथनीय
पीयूष-श्रोत-सी बहती मृदु जिनको छू निःश्वासें रसाल
तनु गौर श्वेत सँगमरमर-सा चिक्वन, कोमल, प्रति अँग सुडौल
‘कटि क्षीण कटी, पृथु वक्ष रहे नसनस में रस-माधुरी घोल
मृदु गोल-गोल बाँहें मृणाल-सी, कमल अमल कर तुहिनजड़े
कोमल पलास-पुरइन पगतल, मधथुकर-गुंजन नूपुर अमोल
मैं देख रहा संमुख, मधुऋतु-कलिका-सी तुम हँसती अविकच
मधु-स्मिति स्वर्गिक उन्मादभरी, है स्वप्न सदूश फिर भी जो सच
नीले नयनों में काजल-सी अति क्षीण कामना की रेखा
विधि ने रीता निज कोष किया मानो इतनी सुंदरता रच
तुम वीणा-सी अभिसार किये, कोमल छंदों की कड़ियों-सी
मुखरित मेरे जीवन-वन में पावस की रिमझिम लड़ियों-सी
प्रार्थना-मंत्र सी चिर-पावन, मन में कोयल-सी कूक रही,
तुम मिसरी सी मधुमय, उज्ज्वल हिम की मोहक फुलझड़ियों-सी,
तुम मिलन स्वप्न अस्पष्ट बनी, छिपती-सी जाती पलकों में
सित स्वर्गगा की लहरी-सी शत-शत तारों की झलकों में
‘पल्लव-हरीतिमा में ओझल, पाटल-कलि की अरुणाभा-सी
उफनाती सिंधु-तरगों-सी रजनी की नीली अलकों में
तुम तो सुंगध के बादल-सी, घुलती-सी मधु-निःस्वासों में
मिटती शंका, दुविधा-सी, जीवन के श्रद्धा-विश्वासों में
प्रिय तुम फाल्गुन दोहपरी में पिक की कंपित स्वर-लहरी-सी
कोमल प्रकाश-सी लय होती, जीवन के हास विलासों में
1942