anbindhe moti

प्राण तुम ज्योत्स्ना-सी सुकुमार

किरण-सी शीतल, सुरभित श्वास
अंग उज्जवल, नतमुख, हिम-हास,
कुमुद-दृग, चंचल भृकुटि-विलास
अलक में हरसिंगार

दीप अंचल में, चंचल वक्ष
व्योम-गंगा-सी उतर समक्ष
विभासित करती निर्जन कक्ष
बाहु-लतिका गलहार

क्षीण-कटि, ऊर्मि-चरण, स्वर मौन
रँग रहा नव कपोल-दल कौन ?
लाज से मुड़ती जाओ यों न,
छेड़ अंतर के तार
प्राण तुम ज्योत्स्ना-सी सुकुमार

1948