अनबिंधे मोती
अंचल लहरा चलती वह अलक मुख पर मेदुरा हुई अमावस का दिया अविरल प्रिय का पंथ निरखती आईना कहता है…
अन्तःसलिला
मैं कवि के भावों की रानी मैं यौवन की पंखुरिया खोल रहा हूँ आत्म-चिंतन फूल खिला उसर में गीत में…
तुझे पाया अपने को खोकर
अब तो अंग थक गये सारे आस्था दृढ हो यदि अंतर में काल से डरें जिन्हें डरना है कहाँ जायेगी…
अहल्या
मैं कौन? कहाँ से तिर आयी हिम-कणिका-सी ! क्रमश: तारक द्युतिहीन, लीन स्वर-मधुप-वृन्द भावी का धनुष-भंग, सीता-राघव-विवाह
दिया जग को तुझसे जो पाया
अब मैं शरण तुम्हारी अटल है जो उसने लिख डाला आत्माओं ! महान कवियों की आस है वृथा स्वाति के…
देश विराना है
अकेलेपन का सफ़र अब इस शेष विदा के क्षण में अब कुल राम हवाले अब तो ठहरने लगे किनारे अब…
आयु बनी प्रस्तावना
आँसू को बूँदों से गढ़ता मैं प्रतिमा सुकुमार तुम्हारी आज मेरे होंठ पर तिरती सुलगती प्यास किसकी आधा जीवन तो…
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