हम तो गा कर मुक्त हुए_Hum To Gaa Kar Mukt Huye
- अब इस शेष विदा के क्षण में
- अब कुल राम हवाले
- अचरज मुझको कैसे तुझ तक करुण पुकार गयी थी
- अब यह खेल आप ही खेलो
- अब यह ध्वजा कौन पकड़ेगा?
- अयि सघन वन कुन्तले
- अक्षय है भण्डार तेरा
- इस तट पर ठहरा है कोई उस तट पर ठहरा है
- ओ सहचर अनजाने!
- अन्धकार,
- कभी फिर होगा मिलन हमारा?
- कवि के मोहक वेश में
- कितनी भूलें, नाथ! गिनाऊँ!
- कुछ भी और न लूँगा
- कुछ भी बदले में नहीं लेना है
- कोई साथ न होगा
- कोयल की कुहक का यहीं अंत है
- क्यों तू भेजकर समझे, तेरा काम हो गया पूरा!
- कोयल पंचम सुर में बोली
- कौन अब सुनेगा ये गीत!
- कौन-सी पहचान होगी?
- गाये जो ये गीत बैठकर मैंने तरु की डाल पर
- गीत का जीवन कितना है!
- गीत में आँसू ही भाता है
- गीत ये गूंजेंगे उर-उर में
- चाँद को चाहे रहे जिस धाम, रहने दो
- चिंता किस-किस की करिये !
- चिंता नहीं फूल जो गुँथकर माला में न गले तक पहुँचा
- जब भी कलम हाथ से छोड़ी
- जाने कौन व्यथा जीवन की!
- जीवन तो केवल प्रवाह है
- जिस दिन नीरव होगी वीणा
- जिस क्षण चलने की वेला हो
- नहीं कहीं विश्राम
- निर्जन यमुना-तट से
- पथ का छोर कहाँ है?
- पल-पल अंधकार बढ़ता है
- पल में धोकर साफ कर सकूँ, ऐसा ह्रदय दिया होता
- पापिनी ईर्ष्या डूब मरे
- पाँव हम तेरे पकड़े रहे
- पास रहकर भी कितनी दूरी!
- प्रेम करके हम तो पछताये
- फेर लो ये सुगंधमय साँसें
- बरसो हे अंबर के दानी
- मंगल साज सजे
- मन! जान रहा है जब तू, जो भी पाए खोना है
- मेरी वीणा, तान तुम्हारी
- मेरे जीवन-स्वामी
- मैं आँधी का तिनका
- मैने क्यों पाला यह रोग!
- मैंने दर्पण तोड़ दिया है
- मैंने वंशी नहीं बजायी
- मैंने सातों सुर साधे हैं
- मोल नहीं लूँगा इन क्षणों का
- यह रत्नों का हार किसे पहनाऊँ?
- ये वासंती बेलें
- रागिनी यह घर-घर गूँजेगी
- श्याम पुतलियाँ चमकीं
- सब कुछ छोड़ चला बनजारा
- सब कुछ तो हो चुका समर्पित
- सारी भव-व्याधियों से परे
- हम तो गाकर मुक्त हुए
- हम तो नाव डुबा कर आये
- हमारी वेला बीत चुकी है
- “गुलाबजी की कृति ’हम तो गाकर मुक्त हुए’ ने समसामयिक हिन्दी-साहित्य को शाश्वत भाव-विभूति प्रदान की है।”
-डॉ कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह (पू. अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मगध वि. विद्यालय)