नाव सिन्धु में छोड़ी_Nao Sindhu Mein Chhodi
- अब तुम नौका लेकर आये
- अब तो स्वरमय प्राण हमारे
- अपने रँग में मुझे रँगा दो
- एक सच्चा तेरा नाता है
- कटे दिन काँवर ढोते-ढोते
- कभी तो अगला ठाठ सजाओ
- कभी सपनों में ही मिल जाते
- कहाँ जाइये , किससे कहिये!
- कहाँ तक उड़ती जाए पतंग
- कहाँ तक जायेगी झंकार ?
- कुछ तो पुण्य कमाया होगा
- कैसी अद्भुत तेरी माया
- क्यों तुम दूर दूर हो छाये?
- कौन आता है सपना बन के
- कौन पहले अपना रुख मोड़े?
- कौन पीड़ा को सुर में गाता
- गीत मैंने लिख-लिखकर फाड़े
- चले तो देखा नहीं पलटकर
- जब तक हाथों में है वीणा
- जब ये जीवन फिर पायेंगे
- जब मैं सोते से जागूँगा
- जी चुके जीवन को क्या जीना!
- जीवन गाते-गाते बीते
- तार न जब डोलेगा
- तारा जो व्योम से गिरा
- तुझको पथ कैसे मिल पाए
- तुझको पथ कैसे सूझेगा
- तुझसे तार जुड़ा है मेरा
- तूने मुझको कितना चाहा
- दीपक मंद हुआ जाता है
- दुनिया काँटों की क्यारी है
- न मिलता यदि अवलंब तुम्हारा
- पास-पास ही रहिये
- भीत्ति नहीं है कोई
- मन का ताप हरो
- मुझे तो लहर बना रहने दो
- मेरे गीत, तुम्हारा स्वर हो
- मेरी छाया मुझसे आगे
- मेरी दुर्बलता ही बल है
- मैं इस घर से निकल न पाया
- मैंने क्या कुछ नहीं कहा है
- मैंने प्रेमयोग साधा है
- मैंने रात चैन से काटी
- यह शोभा किस काम की
- यह तो शीशमहल है
- यदि वे दिन फिर आते
- यदि हम तुझमें ही जीते हैं
- रात सुन ली थी तान तुम्हारी
- वही है धरा, वही है अम्बर
- सपने क्या-क्या नहीं दिखाते!
- सब कुछ साथ साथ चलता है
- समस्या बड़ी कठिन अब आयी
- सहन है नहीं विरह भी क्षण का
- सहारा देते रहो निरंतर
- साज नहीं सजता है
- हम तो अपने में ही फूले
- हम तो काँटे ही चुनते हैं
- हम तो शब्दों के व्यापारी
- हमने नाव सिन्धु में छोड़ी
- हमारे बीत रहे दिन कैसे !