गीत-वृन्दावन_Geet-Vrindavan

  1. यों तो कालिंदी है काली  
  2. मेघ तो फिर-फिर ये छायेंगे  
  3. युगल छवि देखे ही बनती है  
  4. निर्जन यमुना-तट से  
  5. तृण की ओट छिपे गिरधारी  
  6. इसी कदम्ब तले   
  7. लौटकर हरि वृन्दावन आते!  
  8. न क्या सुधि आयी वृन्दावन की  
  9. तुमने अच्छी प्रीति निभायी!  
  10. सुना जब हरि है जाने वाले  
  11. न कोयल कूके वृन्दावन में  
  12. फिर घनश्याम गगन में छाये  
  13. राधा मुरली कर में लेती   
  14. राधा हरि को देख न पाती  
  15. सुना, ब्रज में फिर श्याम पधारे  
  16. राधिका दौड़ द्वार तक आयी  
  17. रात यदि श्याम नहीं आये थे  
  18. पत्री कैसे लिखूँ, कन्हाई!  
  19. लोग थे फूले नहीं समाये  
  20. चलो मधुवन में चलकर नाचें  
  21. ‘चलो, सब चले द्वारिका मिलकर’  
  22. द्वारिका में जब कोयल बोली  
  23. दूत ने माँ के वचन सुनाये  
  24. कौन बाबा की व्यथा बताये!  
  25. स्वप्न में राधा पडी दिखाई  
  26. ‘मुरली राधा ने भिजवाई’  
  27. मुरली कैसे अधर धरूँ!  
  28. कहा हरि ने ‘ब्रज-रज है प्यारी  
  29. कोई राधा से कह देता  
  30. रुक्मिणी बोली, — ‘पत्रा लाओ   
  31. रुक्मिणी हारी जब समझा के 
  32. ‘रहिये चल कर वृन्दावन में  
  33. भीड़ में राधा पड़ी दिखाई  
  34. ‘कितनी बदल गयी तू राधे!  
  35. ‘राधे! कुछ तो मुँह से कहती!  
  36. ‘कहीं ये सपना टूट न जाये!  
  37. ‘सूखा सावन,पूनो काली 
  38. ‘राधे! कैसे भूली जायें  
  39. ‘मन के तार तुझी से बाँधे  
  40. ‘नहीं वृन्दावन दूर कहीं था  
  41. द्वारिका में, प्रभु! सुख से सोते 
  42. कौन कहता है, हम बिछुड़े हैं  
  43. नाथ! क्या राधेश्याम कहाये 
  44. मैंने नारी-तन क्यों पाया !  
  45. अब तो छोड़ नहीं जायेंगे ! 
  46. करूँ क्या नहीं समझ में आता 
  47. हाय! अब तो आशा भी खोयी 
  48. लौट कर व्रज में कैसे जाऊँ  
  49. याद किस-किसकी उस क्षण आयी !

• “यदि गुलाबजी ने और कुछ भी न लिखकर केवल ’गीत-वृन्दावन’ और ’सीता-वनवास’ की रचना की होती तो भी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में उनकी गणना होती.”
-इंदुकांत शुक्ल (यू॰एस॰ए॰)