रूप की धूप_Roop Ki Dhoop

  1. अस्मिता – 90 
  2. उमर खैयाम – 67 
  3. कुंवारी दृष्टि – 11 
  4. दोहा-शतदल – 87 
  5. योग-वियोग – 25 
  6. रूप-की-धूप – 61 
  7. अपूर्ण प्रेम – रात सपने में कोई आया  
  8. अँधेरा फैलता है भूमि पर 
  9. आज की रात – खूब सावन की झड़ी  
  10. कश्मीर – हर कहीं अमृतमयी धारा है  
  11. चली आओ – बिछलती चाँदनी, सिहरन हवा में 
  12. तुम – मुग्ध मन की नयी लगन  
  13. तुम हो – रात है, बयाबान है, तुम हो  
  14. पुरुरवा – कभी वसंत इधर से 
  15. प्रेरणा – चाँद की चाँदनी उतरती  
  16. बद्रीनाथ के पथ पर – अज्ञात के बंधन ने बुलाया मुझको 
  17. बेढ़बजी – वाणी में बहक घोलनेवाले 
  18. मैं – मैं शून्य की रहस्यमयी सत्ता 
  19. विमुक्ति – गहन नभ की अँधेरी 
  20. वियोग – इस तरह रात बिताता हूँ मैं  
  21. सीता-वनवास – था राम को वनवास न  
  22. हरिद्वार की गंगा के किनारे – संध्या ने बिखेर दिये 
  23. हिमालय – आएगा नहीं काम  

• “’रूप की धूप’ मुझे बहुत पसन्द आयी। इसमें उर्दू के समान, प्रायः उसीके छन्दों में सहज ही प्रभाव डालनेवाली बोधक उक्तियाँ हैं, जो बहुत ही आकर्षक और प्रभावशाली रूप में अभिव्यक्त है।”
-पं हजारी प्रसाद द्विवेदी