ग़ज़ल-गंगा और उसकी लहरें_Ghazal-Ganga Aur Uski Lahren

‘ग़ज़ल-गंगा और उसकी लहरें’ में  महाकवि गुलाब की चारों ग़ज़ल संग्रह की ग़ज़लों के अतिरिक्त जो ग़ज़ले संकलित हैं, वे यहाँ दी गयी हैं।

साथ ही इस पुस्तक में महाकवि द्वारा रचित ग़ज़लों के सभी 1957 शेर भी यहाँ अकारादि क्रम से दिए गए हैं।

  1. अदाओं की तेरी जादूगरी जानी नहीं जाती
  2. अब कहाँ चाँद सितारे हैं नज़र के आगे !
  3. अब खुला राज़ कि इस लफ़्ज़ का मानी क्या है
  4. उम्र भर ख़ाक ही छाना किये वीराने की
  5. कभी धड़कनों में है दिल की तू
  6. किसीने गाया, किसीने पढ़ा, किसीने सुना
  7. खेल है यह किसी जादूगर का,
  8. जो न आये लौटके फिर कभी,
  9. तू यहाँ मिले कि वहाँ मिले,
  10. तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपा के ग़ज़लों में रख रहे हैं
  11. नज़र से होंठ पर, होंठों से दिल में जा पहुँचा
  12. पीनेवालों को तो, साक़ी ! तभी पीना आया
  13. फिर इस दिल के मचलने की कहानी याद आती है
  14. भरम ही मेरा कि जादू तेरी मुस्कान में है
  15. भले ही चाँद-सितारों में ढूँढ़ हारी नज़र
  16. यों तो ख़ुशी के दौर भी होते हैं कम नहीं
  17. साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं
  18. अ और आ से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  19. इ,उ से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  20. ए,ओ से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  21. क,ख से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  22. ग,घ से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  23. च,छ से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  24. ज,झ से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  25. ट,ठ,ड,ढ से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  26. त,थ से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  27. द,ध से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  28. न से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  29. प,फ से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  30. ब,भ से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  31. म से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  32. य,रे से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  33. ल, व से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  34. श,स से शुरू होने वाले शेरों का संकलन
  35. ह से शुरू होने वाले शेरों का संकलन

“पहली बार गुलाबजी ने हिंदी को वे ग़ज़लें प्रदान की हैं जो हिंदी की अपनी हैं एवं उसकी अपनी भावभूमि पर खड़ी हैं…..गुलाबजी ने ग़ज़ल की आत्मा को पहचाना है और न केवल उर्दू ग़ज़लों का-सा सहज शब्द-विन्यास, बाँकपन और तेवर उनकी ग़ज़लों में मिलता है, बल्कि ग़ज़लों के अनुरूप वर्ण्य-विषय देने में तथा संप्रेषणीयता और भाव-प्रवाह उत्पन्न करने में भी वे खरे उतरे हैं। गुलाबजी ने उर्दू ग़ज़लों के मोहक रूप को सांगोपांग हिन्दी में उतारकर हिन्दी साहित्य की बहुत बड़ी सेवा की है।”
-श्री गंगाशरण सिंह (अध्यक्ष अ. भा. हिन्दी संस्था संघ)