शब्दों से परे_Shabdon Se Pare

  1. इसलिए मैं व्यक्त से अव्यक्त
  2. ऐसे ही रहा
  3. ओ मेरे मन! तू इतना चिर
  4. करुणामय! तेरी करुणा का मधुर
  5. किस-किसका दूँ धन्यवाद
  6. कुछ भी नहीं किया
  7. कुछ भी मत हो, मत हो
  8. कैसे पार उड़ूँ जीवन के
  9. घुटती साँस, छूटता साहस
  10. जाने मैंने उस जीवन में
  11. जीवन तो ताशों का घर है
  12. जीवन में संघर्ष न हो तो
  13. डूब रहा हूँ मैं महाशून्य के
  14. तीर तो तान-तानकर मारे
  15. दिन का शेष हुआ जाता है
  16. दीपक के बुझने का पल है
  17. दुःख के नील घनों में
  18. दुःख सहने को बना मनुज
  19. देख चुके चाँदनी रात कवि!
  20. धरती पर अम्बर के नीचे
  21. न कोई पेड़-पौधा है,
  22. नाव में छेद हुआ
  23. निज से कुछ और बड़ा होना है
  24. पल-पल, प्रहर-प्रहर
  25. फट-फत’ मेरे पांवों के पीछे आता यह कौन है
  26. फिरे, सब फिरे
  27. फूल रे! झड़ने के दिन आये
  28. फूलों की पँखुरियों पर रखना प्रभु
  29. बिगड़ी बात बनाते हो तुम
  30. मृत्यु की खोज में दीप यह प्राण का
  31. मेरा तो लघु तारा
  32. मुक्ति की बातें निरी ढोंग है
  33. मैंने जो लिखा है
  34. मैंने तो केवल भाषा दी है
  35. मैंने मन का मोल किया था
  36. मैंने यह साँप क्यों पकड़ा है
  37. यह कैसा वर है !
  38. यह भी बीत जायेगा
  39. यों तो आज धरती में गड़ा हूँ
  40. यों ही हरदम चला करेंगे
  41. रात का चँदोवा घिर गया
  42. रूप न राग न रस की वर्षा
  43. लो उतर गयी हलदी के रँग की साँस एक
  44. वह नहीं जो लिख सका मैं
  45. शिशु कहीं चीख रहा एक अँधेरी छत से
  46. शेष की दीवार
  47. सबके हित एक-सा खिला
  48. सबने तो लिए लूट निज-निज भाग
  49. हूँ शरबिंधा आखेट मैं

• “’शब्दों से परे’ में गोचर से अगोचर की ओर एक प्रच्छन्न प्रस्थान है। कहीं-कहीं कवि का अंतर्मन महाशून्य के द्वार पर दस्तकें देता हुआ दीखता है।”
-डॉ॰ कुमार विमल