दिया जग को तुझसे जो पाया_Diya Jag Ko Tujhse Jo Paya
- अब मैं शरण तुम्हारी
- अटल है जो उसने लिख डाला
- आत्माओ ! महान कवियों की
- आस है वृथा स्वाति के कण की
- इसीको भेजा था स्रष्टा ने!
- इसीमें पाया है विश्राम
- उन चरणों की रज भी पाकर
- एक निद्रा से तो तू जागे
- कभी इस पर थी कृपा तुम्हारी
- कभी ज्यों नभ पथ से आती हो
- करुणा, क्षमा, दया, प्रायश्चित
- कविता में जीवन है सारा
- कृपा तो मुझ पर रही अपार
- कृपा तो कभी तुम्हारी होगी
- काल ने जब भी मुझको घेरा
- काल! यह सृष्टि तुझीसे हारी
- काल! तू कब किसका हो पाया!
- क्या फल लौट यहाँ फिर आये
- क्या हो रत्न-विभूषण पाए
- कितने रूपों में आ-आकर
- कीर्ति की महिमा भली बखानी
- कैसे तुझे रिझाऊँ, स्वामी!
- कैसे प्राण बचायें !
- क्यों तू चिंता करे, अभागे!
- क्यों तू मरे व्यर्थ चिंता से
- कौन लेगा ये रत्न उधार
- कौन हम और कहाँ से आये
- खेल है यह किसी जादूगर का_ग़ज़ल
- खोल दो सुरमंदिर का द्वार
- गीत गा-गाकर तुझे रिझाऊँ
- गाते-गाते तुझको पाऊँ
- छोड़ इस घर को जब जाएगा
- छोड़ दे ममता इस वीणा की
- जब मैं सदा साथ हूँ तेरे
- जग अपूर्णता का ही फल है
- जब तक गुँथ पायेगा हार
- जिसने हँस-हँस गरल पिया है
- जीवन दुख से भरी कहानी
- तेरी लीला की बलिहारी
- तेरे सुख-दुख का क्या मोल!
- द्वन्द जग के चित में न धरूँगा
- दिया जग को तुझसे जो पाया
- दुख में भी निश्चल अंतर हो
- दुखों में दुख ही क्यों तू माने
- देखूँ फिर-फिर नभ की ओर
- देहली का यह जीवन न्यारा
- नज़र से होंठ पर _ग़ज़ल
- नाथ! तुम जिसको अपना लेते
- नाथ! यह कैसी रीति तुम्हारी !
- नाथ! क्या दोगे यह अवकाश
- नाविक! ले जा अपनी नाव
- नाम-रूप दोनों हों झूठे
- पकड़े राम नाम की डोर
- परीक्षा मेरी नहीं, तुम्हारी
- प्रभु! इस बंधन की बलिहारी
- पेड़ तो रोपे कई हजार
- प्राण तेरे सुर में हैं ढाले
- प्रेम का बंधन कैसे तोड़ूँ!
- प्रेम,प्रभु! तूने सदा निभाया
- बँटने दो प्रसाद औरों हित
- बनूँ देहली का पत्थर मैं
- बासी फूल नहीं लाऊँगा
- भले ही सब मिटता
- भले ही सारा जग मुंह फेरे
- भुलाता सारे दुःख संताप
- मन यदि पूर्णकाम रह पाये
- मंगल-कामना
- माना यही वसंत न होगा
- मुझको भली-भांति लो जान
- मूढ़! क्यों ढूँढे जग का मान!
- मेरी वीणा मौन न होगी
- मेरे अन्तर्वासी राम
- मैं तो जल पर बिंब तुम्हारा
- मैं मोती हूँ सागरतल का
- मैंने गीत यहाँ जो गाये
- मैंने पत्र-पुष्प जो पाये
- मोल कोई तेरा क्यों आँके
- मोह निजता का छोड़ न पाऊँ
- यदि मैं भूल न करता
- यह तप का भ्रम क्यों पाला है !
- राग क्यों मौन किये अंतर के !
- राग जो भी अंतर से आया
- राग जो अंतर में छाया है
- लगन सच्ची है यदि इस मन की
- लिये प्रभु! यह गीतों का हार
- विरोधी बन मुँह कहाँ छिपाऊँ!
- शत नमन तुझे, ओ महाकाल
- संबल मुझे क्षमा का तेरी
- सँभाला तेरी ही करूणा ने
- स्वामी ! वह प्रतीति दो मन की
- सुरों के बंधन मैंने खोले
- स्नेह तेरी करुणा का पाकर
- ह्रदय में जब है तेरा वास
- हाथ में तेरे है जब डोर
- हे रवींद्रनाथ!
- हे जगकर्ता! तुझे प्रणाम