भक्ति-गंगा_Bhakti Ganga
- अकेला चल
- अकेले मुझको छोड़ न देना
- अच्छे रहे मन से जो तुम्हारे ही रहे
- अचरज मुझको, कैसे तुझ तक करुण पुकार गयी थी
- अपना बानक आप बनाओ
- अपनी सेवा का अवसर दे
- अपने रँग में मुझे रँगा दो
- अपरिमित दया, दयामय! तेरी
- अपेक्षा जग में सबसे त्यागी
- अपेक्षा जग से क्या करता है
- अब क्या माँगूँ आगे!
- अब कहाँ बसेरा अपना!
- अब यह खेल आप ही खेलो
- अब यह घटा बरस ले जमके
- अब यह नौका फँसी भँवर में
- अयि मानस-कमल-विहारिणी
- अक्षय है भण्डार तेरा
- आया चरण-शरण में बेसुध थककर चारों ओर से
- इतने ठाठ व्यर्थ क्यों बाँधे
- इसमें तेरी कौन बड़ाई
- इसलिए मैं व्यक्त से अव्यक्त होना चाहता हूँ
- एक बस तुझसे बनी रहे
- एक सच्चा तेरा नाता है
- ऐसे ही रह लूँगा
- ओ मेरे मन!
- ओ मेरी मानस-सुंदरी!
- ओ सहचर अनजाने!
- और क्या तुझे चाहिए, बोल
- अंतर से मत जाना
- कटे दिन काँवर ढोते-ढोते
- कभी तो अगला ठाठ सजाओ
- कभी तो ठहरे यह मन मेरा
- कभी यदि ऐसा देखो कोई
- क्या नहीं इस जीवन में पाया
- क्यों तुम दूर-दूर हो छाये?
- क्यों तू उसको देख न पाया?
- क्यों तू चिंता करे अभागे?
- क्यों तू माला व्यर्थ बनाये?
- क्यों तू मुझे भेज कर समझे तेरा काम हो गया पूरा?
- करूँ क्या, यदि मन हो न विरागी?
- करुणामय! तेरी करुणा का मधुर भार झेलूँ कैसे!
- कल की कल देखी जाएगी
- कहाँ तक उड़ती जाए पतंग?
- कहाँ मुक्ति का द्वार?
- कहाँ वह पीर प्रेम की पाऊँ?
- काल की हो अनंत भी धारा
- कितनी भूलें नाथ गिनाऊँ!
- कितने जीवन, कितनी बार!
- कितने बड़े हाथ हैं तेरे!
- किस-किस का दूँ धन्यवाद मैं तुझको, मेरे दैव, बता!
- किसने जीवन दीप जुगाया?
- किस सुर में मैं गाऊँ?
- कुछ भी और न लूँगा
- कुछ भी बदले में नहीं लेना है
- कुछ भी मत हो, मत हो, मत हो
- कैसी अद्भुत तेरी माया!
- कैसे आऊँ द्वार तुम्हारे?
- कैसे आऊँ शरण तुम्हारी!
- कैसे तेरे सुर में गाऊँ?
- कैसे पहुँचूँ तुझ तक, स्वामी!
- कैसे पार उड़ूँ जीवन के?
- कैसे बजे बीन?
- कैसे मुझे सँभालोगे?
- कैसे यह अभिनय कर पाऊँ?
- कैसे रूप तुम्हारा देखूँ?
- कोई साथ न होगा
- कौन अपना है, कौन पराया!
- कौन इस पीड़ा को पहिचाने!
- कौन सा रूप ध्यान में लाऊँ?
- कृपा का कैसे मोल चुकाऊँ!
- खेल लेने दो मन के दाँव
- गीत तो रच-रचकर लिख डाले
- चला मैं सदा लीक से हटके
- चाह यह नहीं, पूर्ण निष्कृति दो
- चिंता क्या! मन रे!
- चिंता किस-किस की करिए!
- चिंता नहीं फूल जो गुँथकर माला में न गले तक पहुँचा
- चित्र भी यदि मिटनेवाले हैं!
- छोड़ मत देना पथ के बीच
- जब तक तेरे निकट न आऊँ
- जब तक हाथों में है वीणा
- जब मैं सोते से जागूँगा
- जलो वैश्वानर! खूब जलो
- जाने कौन व्यथा जीवन की!
- जिस क्षण चलने की वेला हो
- जीवन तुझे समर्पित किया
- जीवन तो केवल प्रवाह है!
- जीवन सफल करो
- जीवन-स्वामी!
- झलक भी यदि न रूप की पाऊँ
- तभी तक है सपनों का फेरा
- तारा जो व्योम से गिरा
- तीर तो तान-तानकर मारे
- तुझको पथ कैसे मिल पाये!
- तुझको पथ कैसे सूझेगा!
- तुझे तार जुड़ा है मेरा
- तुम्हीं दुख में आड़े आते हो
- तुम हो मेरे पास निरंतर फिर यह अंतर क्या है?
- तूने जो बोये सो काटे
- तूने कितना नाच नचाया!
- तूने कैसा खेल रचाया!
- तूने मुझको कितना चाहा!
- तू ही तू जब दायें-बायें
- तू ही नहीं अधीर
- तू है तो, भय क्या!
- तेरी करुणा आड़े आयी
- तेरी बिगड़ी कौन बनाये!
- तेरा साथ नहीं छोड़ूँगा
- दर्पण कैसे उन्हें दिखाये!
- दया यह भी कम न थी तुम्हारी
- दुख यह किसके आगे रोऊँ!
- दुनिया काँटों की क्यारी है
- दुनिया मेरी है या तेरी
- न जाने क्या होगा उस ओर
- न मिलता यदि अवलंब तुम्हारा
- नहीं कभी भागूँगा जग से, सब कुछ सहन करूँगा
- नहीं कहीं विश्राम
- नहीं भी इस तट पर आयेंगे
- नहीं यदि तुझ तक भी पहुँचेगी
- नहीं यदि तू भी दया करेगा
- नहीं यदि तेरा मिले सहारा
- नहीं यदि तेरा ही मन माने
- नहीं यदि मेरा त्रास हरोगे
- नहीं विराम लिया है
- न है मेरे दोषों की माप
- नाचते बीती सारी रात
- नाच रे मयूर मन! नाच रे!
- नाथ! क्या माँगूँ चाँदी-सोना
- नाथ! क्यों डांड़ चलाना छोड़ा?
- नाथ! तुम कब से हुए विरागी?
- निर्जन सागर-वेला
- नींद कब सुख की आएगी?
- पथ का छोर कहाँ है?
- पत्री मैंने भी भिजवायी
- पापिनी ईर्ष्या डूब मरे
- पाँव हम तेरे पकड़े रहे
- प्यार यदि है तो आगे आओ
- प्रतिदिन, प्रतिपल, साथ तुम्हारे
- प्रभु! यह महाभीरु मन मेरा
- प्रेम की पीड़ा पल न भुलाऊँ
- प्रेम प्रभु चरणों में दृढ़ होता
- पूछते भी अब तो डरता हूँ
- फूल मुरझाने लगा है
- बड़ी भीड़ है, देव! तुम्हारे द्वार पर
- बरसो, हे करुणा के जलधर!
- बाँधकर नियमों से जग सारा
- बिगड़ी बात बनाते हो तुम
- बैठ कर मेरे सुर में गाओ
- बैठा हूँ आकर तेरी देहली के पास
- भगवती, आद्याशक्ति, भवानी!
- भय से दो त्राण
- भरोसा है तेरे ही बल का
- भला इस जीवन का क्या अर्थ
- भाग्य पर दोष व्यर्थ मढ़ता है
- मन का ताप हरो
- मन का यह विश्वास न डोले
- मन का विष हरण करो हे!
- मन! जान रहा है जब तू जो भी पाये खोना है
- मन! तू अब भी तोष न माने
- मन मेरे! नीलकंठ बन
- मन रे! किसने तुझे लुभाया!
- मन रे! डांड न छूटे कर से
- महासिंधु लहराता
- मंगल साज सजे
- माना कुछ मेरा न यहाँ था
- मार्ग अनदेखा, लक्ष्य अजाना
- मार्ग कैसा भी बीहड़ आये
- मिलन की बेला बीत गयी
- मुक्ति नहीं, भक्ति चाहिये
- मुझ-सा कौन यहाँ बड़भागी!
- मुझे तो एक भक्ति का बल है
- मुझे तो लहर बना रहने दो
- मुझे तो वही रूप है प्यारा
- मुझे न होगी धन की चिंता
- मुझे फिर है इस जग में आना
- मुझे भी अपना दास बनाओ
- मुझे भुला मत देना
- मेरा अंत न होगा
- मेरा मन विश्राम न जाने
- मेरी छाया मुझसे आगे
- मेरी दुर्बलता ही बल है
- मेरी वीणा, तान तुम्हारी
- मेरे अंतर में छा जाओ
- मेरे जीवन-स्वामी!
- मेरे संग-संग चलने वाले!
- मैं आँधी का तिनका
- मैं इस घर से निकल न पाया
- मैं तो बस चुप मार रहूँगा
- मैंने दर्पण तोड़ दिया है
- मैंने तुझको ही गाया है
- मैंने तेरी तान सुनी है
- मैंने तो केवल भाषा दी है
- मैंने रात चैन से काटी
- मैंने वंशी नहीं बजायी
- मैंने सातों सुर साधे हैं
- यदि मैं चित्र न देखूँ तेरे
- यदि मैं तुम्हें भूल भी जाऊँ
- यदि हम तुझमें ही जीते हैं
- यदि हम सेवा में सुख पायें
- यह तो शीशमहल है
- यह मन बड़ा हठी है, नाथ!
- यह शोभा किस काम की
- यों तो कालिंदी है काली
- रक्षा करो इनकी, प्रभु! काल के झकोरों से
- राजसिंहासन के बदले
- लिखूँ क्या, जब तक तू न लिखाये
- वही है धरा, वही है अम्बर
- वही हो नाव, वही हो धारा
- विवशता हैं ये तानें मेरी
- वृथा ही तू क्यों जूझ मरे!
- व्यर्थ क्यों घुट-घुट मरना है!
- शक्ति दे, मन को सुदृढ़ बनाऊँ!
- शरण में, माँ! मुझको भी ले ले
- सब कुछ कृष्णार्पणम
- सब कुछ तो हो चुका समर्पित प्रथम मिलन की रात में
- सब कुछ साथ-साथ चलता है
- सब कुछ स्वीकार
- सबने तो लिये लूट निज-निज भाग
- सभी फल तोड़-तोड़ ले जायें
- समस्या बड़ी कठिन अब आयी
- सहज हो प्रभु साधना हमारी
- सहारा देते रहो निरंतर
- सही कर दे तू, तभी सही है
- सातों सुर बोलेंगे
- सारी भव-व्याधियों से परे
- सारी धरती डेरा अपना
- सोच में यदि दिन रात मरुँ
- हम तो अपने में ही फूले
- हम तो गाकर मुक्त हुए
- हम तो यही खेल खेलेंगे
- हम तो रँगे प्रेम के रँग में
- हमने नाव सिन्धु में छोड़ी
- हमारी टूट गयी है डोर
- हमारे कहने पर मत जायें
- हर संध्या श्रृंगार किये मैं देखूँ खड़ी-खड़ी
- हाथ से छूट रही है वीणा
- हाथ से साज नहीं छोड़ा है
- हार नहीं मानूँगा
- हे प्रभु! सब अपराध हमारे क्षमा करो
- क्षमा का ही तेरी संबल है
- क्षमा यदि न कर सके अपराध
• “श्री खंडेलवाल की प्रायः आधी शती की काव्य-साधना में काव्य की जो विविधता और कहीं-कहीं जो ऊँचाई देखने में आती है, वह आश्चेर्यजनक है।”
-पद्मभूषण पं॰ श्रीनारायण चतुर्वेदी